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भारत पर मेक्सिको का 50% टैरिफ: ऑटो निर्यात प्रभावित

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दुनिया के व्यापार जगत में एक बड़ा भूचाल आ गया है! अमेरिका के बाद अब उसके सबसे बड़े पड़ोसी और व्यापारिक साझेदार मेक्सिको ने भी भारत और कुछ अन्य एशियाई देशों पर 50% तक का भारी आयात शुल्क (टैरिफ) लगा दिया है।

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यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है; यह एक ऐसा कठोर कदम है जो भारत के $1 बिलियन (करीब ₹8,300 करोड़) से अधिक के वार्षिक कार निर्यात को सीधे तौर पर खतरे में डाल रहा है। Volkswagen, Hyundai, Nissan, और Maruti Suzuki जैसी दिग्गज भारतीय कंपनियों के लिए यह एक बड़ा झटका है, और उन्हें अपनी पूरी व्यापारिक रणनीति पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

क्यों लिया गया यह फैसला? इसका भारत के लिए क्या मतलब है? और कौन सी कंपनियां होंगी सबसे ज्यादा प्रभावित? आइए, इस बड़ी खबर को आसान भाषा में समझते हैं।


टैरिफ की आग: इन चीज़ों पर बढ़ेगी कीमत

मेक्सिको ने यह शुल्क उन देशों से आने वाले 1,400 से अधिक उत्पादों पर लगाया है, जिनके साथ उसका कोई मुक्त व्यापार समझौता (FTA) नहीं है। भारत भी इसी सूची में आता है।

नया टैरिफ 1 जनवरी 2026 से लागू होगा।


ऑटो सेक्टर पर 'टैरिफ बम'

इस फैसले की सबसे बड़ी मार ऑटोमोबाइल सेक्टर पर पड़ेगी। कारों पर आयात शुल्क 20% से बढ़कर सीधा 50% हो जाएगा।

मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और सऊदी अरब के बाद, भारत के लिए तीसरा सबसे बड़ा कार निर्यात बाजार है। भारतीय कार कंपनियां मेक्सिको को मुख्य रूप से कॉम्पैक्ट और छोटी कारें निर्यात करती हैं, जो वहां की बढ़ती मांग को पूरा करती हैं।

निर्यात का नुकसान: इस टैरिफ से सालाना लगभग $1 बिलियन मूल्य की कार शिपमेंट प्रभावित होने की आशंका है।


किसको लगेगा सबसे बड़ा झटका:

Volkswagen (स्काॅडा ऑटो): भारतीय कार निर्यात में इसकी हिस्सेदारी लगभग 50% है, जिससे यह कंपनी सबसे अधिक प्रभावित होगी।

Hyundai, Nissan, और Suzuki जैसी अन्य प्रमुख निर्यातक भी बड़े नुकसान का सामना करेंगी।

दोपहिया वाहन भी चपेट में: रॉयल एनफील्ड, टीवीएस, बजाज और होंडा जैसी भारतीय टू-व्हीलर कंपनियों का निर्यात भी इससे प्रभावित हो सकता है, क्योंकि भारत से मोटरसाइकिलें भी मेक्सिको में काफी लोकप्रिय हैं।

भारतीय उद्योग समूह, जैसे SIAM (सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स), ने पहले ही भारतीय वाणिज्य मंत्रालय से गुहार लगाई थी कि मेक्सिको के साथ टैरिफ पर "यथास्थिति बनाए रखने" के लिए दबाव बनाया जाए, लेकिन मेक्सिको ने इस विरोध को नज़रअंदाज़ कर दिया।


मेक्सिको यह क्यों कर रहा है? असली वजह क्या है?

मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लॉडिया शीनबाम की सरकार इस कदम को घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने और एशिया से बढ़ते सस्ते आयात पर अपनी निर्भरता कम करने का कदम बता रही है।

लेकिन, व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे एक बड़ा भू-राजनीतिक खेल है, जिसका केंद्र है अमेरिका (USA)।


1. अमेरिका का भारी दबाव

मेक्सिको अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। अमेरिका, खासकर डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में, लंबे समय से मेक्सिको पर दबाव बना रहा है कि वह एशियाई देशों, विशेष रूप से चीन, को अपने बाजार का इस्तेमाल अमेरिका में सस्ते सामान भेजने के लिए न करने दे।

लक्ष्य चीन, शिकार भारत: मेक्सिको का यह कदम मोटे तौर पर अमेरिकी व्यापारिक हितों के अनुरूप है। ऐसा माना जा रहा है कि मेक्सिको अमेरिका को यह दिखाना चाहता है कि वह अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं की रक्षा कर रहा है, खासकर USMCA (यूएस-मेक्सिको-कनाडा समझौता) की आगामी समीक्षा से पहले।

खुद को बचाना: मेक्सिको को डर है कि अगर वह एशियाई आयात को नियंत्रित नहीं करता है, तो अमेरिका उसके स्टील, एल्यूमीनियम और ऑटो सेक्टर पर भारी टैरिफ लगा सकता है। इन एशियाई देशों पर शुल्क बढ़ाकर, मेक्सिको अमेरिका के संभावित गुस्से से बचने की कोशिश कर रहा है।


2. राजस्व बढ़ाना

मेक्सिको की सरकार को उम्मीद है कि इन नए टैरिफ से 2026 में लगभग $3.76 बिलियन (लगभग ₹31,000 करोड़) का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। इस पैसे का उपयोग वह अपने वित्तीय घाटे को कम करने में करेगी।


भारत के लिए बड़ा झटका: आगे क्या होगा?

यह टैरिफ वृद्धि भारत के लिए दोहरी मार है। अमेरिका पहले ही कुछ भारतीय सामानों पर शुल्क बढ़ा चुका है, और अब मेक्सिको का यह कदम 'मेक इन इंडिया' की वैश्विक साख को भी प्रभावित कर सकता है।


भारत के निर्यातकों पर असर

महंगा निर्यात: भारतीय निर्मित सामान मेक्सिको में तुरंत बहुत महंगे हो जाएंगे, जिससे वे जापान, अमेरिका और यूरोपीय कंपनियों के उत्पादों के सामने प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाएंगे।

रणनीति में बदलाव: कार निर्माताओं को अब मेक्सिको के लिए निर्यात रोककर या कम करके अन्य बाजारों (जैसे सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका) पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

उत्पादन की लागत: कुछ भारतीय कंपनियां मेक्सिको की सप्लाई चेन का इस्तेमाल अमेरिका को निर्यात करने के लिए करती थीं; अब उनकी लागत भी बढ़ जाएगी।


कूटनीतिक रास्ता

कार उद्योग और भारतीय वाणिज्य मंत्रालय अब मेक्सिको सरकार के साथ उच्च-स्तरीय बातचीत शुरू करने के लिए मजबूर हैं। उद्योग समूह मेक्सिको को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय कारें मेक्सिकन घरेलू उद्योग के लिए खतरा नहीं हैं, क्योंकि ये मुख्य रूप से छोटी और कॉम्पैक्ट सेगमेंट की हैं, जबकि मेक्सिको बड़ी और महंगी कारें बनाता है।

भारत की प्रमुख मांग होगी: मेक्सिको के साथ जल्द से जल्द एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर करना। अगर एफटीए हो जाता है, तो भारत को टैरिफ में बड़ी राहत मिल सकती है, जिससे यह संकट टल सकता है।

फिलहाल, 1 जनवरी 2026 की समय सीमा तेजी से नजदीक आ रही है, और भारतीय निर्यातकों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही हैं।


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